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“भगवान शिव के प्राचीन ग्रंथ: भारतीय संस्कृति में महेश्वर और उनकी दिव्यता के रहस्यमयी ग्रंथों का संक्षेपण”
महादेव के प्राचीन ग्रंथ भारतीय संस्कृति में भगवान शिव और उनकी महिमा के विषय में विभिन्न प्राचीन ग्रंथों में उपलब्ध हैं। इन ग्रंथों में भगवान शिव के चरित्र, लीला, मंत्र, तपस्या, उपासना, महिमा और भक्तों के अनुभवों का विवरण है। कुछ प्रमुख महादेव प्राचीन ग्रंथों के नाम निम्नलिखित हैं:
1. शिव पुराण: शिव पुराण भगवान शिव के जीवन, लीलाएं, उपासना, तपस्या और दिव्यता को विस्तार से वर्णित करता है। यह ग्रंथ उनके भक्तों के लिए महत्वपूर्ण है और इसमें भगवान शिव के 1008 नाम, महिमा और तपस्या की कथाएं शामिल होती हैं।
2. वायु पुराण: वायु पुराण में भगवान शिव के अवतार, महिमा, विभूति, तपस्या और उनकी भक्ति की कहानियां होती हैं। इस ग्रंथ में शिव विष्णु संवाद के रूप में उपस्थित होते हैं और विभिन्न विषयों पर चर्चा करते हैं।
3. सिवागम: सिवागम ग्रंथ में भगवान शिव के पूजा, अर्चना, तंत्र और मंत्र विधि शामिल होती है। यह ग्रंथ शिव उपासना में रुचि रखने वाले भक्तों के लिए महत्वपूर्ण है।
4. शिव महिम्न: शिव महिम्न ग्रंथ में भगवान शिव की महिमा, शिव ताण्डव स्तोत्र, शिव पञ्चाक्षरी मंत्र और उनके विभिन्न अवतारों का वर्णन होता है।
5. शिव चरित: शिव चरित ग्रंथ में भगवान शिव के जन्म, बाल्यकाल, विवाह, लीलाएं और भक्तों से किए गए विभिन्न संवादों का वर्णन होता है।
ये ग्रंथ भगवान शिव के प्राचीन ग्रंथों में से कुछ हैं। यह सभी ग्रंथ भगवान शिव की भक्ति, साधना और दिव्यता को समझने और उन्हें अनुसरण करने के
लिए महत्वपूर्ण हैं।
शिव पुराण भगवान शिव के जीवन, लीलाएं, उपासना, तपस्या और दिव्यता के कई महत्वपूर्ण कथाएं शामिल करता है। इस ग्रंथ में निम्नलिखित कुछ प्रमुख कथाएं हैं:
1. भगवान शिव का जन्म: शिव पुराण में भगवान शिव के जन्म की कथा विस्तार से बताई गई है। उनका जन्म महाशिवरात्रि के दिन हुआ था और उन्हें भगवती पार्वती के पति और विश्व के भगवान के रूप में प्राप्त किया गया था।
शिव पुराण में भगवान शिव के जन्म की कथा इस प्रकार है:
कलियुग के आदि में, जब सृष्टि का नाश होने वाला था, तब भगवान विष्णु ने ब्रह्मा से कहा कि एक ब्राह्मण यज्ञ के लिए आएगा और तुम उस ब्राह्मण को बहुत ध्यान से पूजो। ब्रह्मा ने विष्णु की आज्ञा का पालन करते हुए एक यज्ञ का आयोजन किया।
यज्ञ के दौरान, एक ब्राह्मण ने अपने स्त्री और संतानों के साथ यज्ञ के लिए विश्वामित्र को बुलाया था, लेकिन विश्वामित्र बहुत ध्यान से नहीं पहचान सके। उन्होंने ब्राह्मण की स्त्री से पूछा कि यह कौन हैं, जो इस यज्ञ के लिए आए हैं, तो स्त्री ने उत्तर दिया कि वे भगवान विष्णु हैं। इसके बाद विश्वामित्र ने उन्हें बहुत सम्मान दिया और उन्हें यज्ञ में स्थान दिया।
इस दौरान, यज्ञ के द्वारा विश्व को सृष्टि का संचालन किया जा रहा था। यज्ञ में जल चढ़ा रहे थे और उस समय भगवान शिव की दिव्य सत्ता यज्ञ के आसपास महसूस होने लगी। भगवान शिव को यज्ञ के आयोजन के बारे में जानने के लिए उन्होंने अपने गणधर्वों को भेजा, लेकिन उन्होंने भगवान शिव का परिचय नहीं किया।
तभी भगवान विष्णु ने भगवान ब्रह्मा को भेजा, लेकिन उन्होंने भी भगवान शिव का परिचय नहीं किया। फिर भगवान विष्णु ने स्वयं अपनी दिव्य मोहिनी रूप में यज्ञ के सभी देवताओं के सामने प्रकट होकर उन्हें अच्छी तरह से मोह लिया। उन्होंने भगवान शिव के सामने स्त्री रूप धारण किया और उनसे विवाह के लिए प्रस्तुति की।
भगवान शिव ने मोहिनी रूप को देखते ही उनको अपने मन में प्रेम भाव से ग्रहण कर लिया और उनसे विवाह कर लिया। इस प्रकार भगवान शिव और भगवती पार्वती का विवाह सम्पन्न हुआ और उन्हें भगवती उमा के नाम से पुकारा गया।
इस प्रकार भगवान शिव का जन्म महाशिवरात्रि के दिन हुआ था और उन्हें विश्व के भगवान और भगवती पार्वती के पति के रूप में प्राप्त किया गया था।
2. ताण्डव नृत्य: शिव पुराण में भगवान शिव के ताण्डव नृत्य की कथा भी है। यह नृत्य उनके भयानक रूप का प्रतीक है और उनकी दिव्यता को प्रकट करता है।
भगवान शिव के तांडव नृत्य की कथा भगवान शिव पुराण में वर्णित है:
एक दिन, भगवान शिव के मन में एक विशेष भाव उत्पन्न हुआ और उन्हें तांडव नृत्य का उत्साह हुआ। भगवान शिव ने तांडव नृत्य का आरंभ किया, जिसमें उन्होंने अपने विशेष रूप का प्रदर्शन किया।
भगवान शिव के तांडव नृत्य का वर्णन भयानक था, जिसमें उन्होंने अपने जटाओं को उड़ान देते हुए और अपने भयानक त्रिशूल को नाचते हुए दिखाया। उनके नृत्य के तेज ने आकाश को भी घेर लिया और उनके नाच की ध्वनि विश्व में गूंजी।
तांडव नृत्य के दौरान, भगवान शिव के आँखों से आग के आंशु भी बहने लगे, जिससे धरती और आकाश भी उनकी भयानकता से विलीन हो गए। उनके नृत्य के दौरान भयानक वातावरण का उत्पन्न होना हुआ, जिससे देवता, ऋषि, गंधर्व, अप्सराएँ, यक्ष, नाग, गरुड़, प्रेत, पिशाच, भूत, प्रेतात्मा, श्रापित, विपदा मुक्त होने लगे।
भगवान शिव के तांडव नृत्य को देखकर ब्रह्मा, विष्णु, इंद्र, वायु, सूर्य, चंद्रमा, अग्नि, इंद्रा, यमराज, ब्रह्मराक्षस, वेताल, प्रलयकारी अवतार और अनेक देवी-देवताएं भगवान शिव की पूजा और स्तुति करते हुए उनकी महिमा को स्तुति की।
तांडव नृत्य के द्वारा भगवान शिव अपनी दिव्यता का प्रदर्शन करते हैं और अपने भयानक रूप का दर्शन देते हैं। इस नृत्य के द्वारा भगवान शिव दुर्भग्य, विनाश और प्रलय के समय का प्रतीक भी होते हैं। इसलिए भगवान शिव का तांडव नृत्य उनके दिव्य और भयानक स्वरूप का प्रतीक है।
3. सती और शिव का विवाह: शिव पुराण में सती और शिव के विवाह की कथा भी है। सती को स्वयंवर में शिव चुनते हैं और उनका विवाह सम्पन्न होता है।
शिव पुराण में सती और शिव के विवाह की कथा इस प्रकार है:
दक्ष राजा और प्रसूती रानी के घर भगवान ब्रह्मा की शाप के कारण सती नामक एक सुन्दरी कन्या का जन्म हुआ। सती बड़ी होते ही तपस्या में लग गईं और भगवान शिव का ध्यान करने लगीं। उन्हें शिव भक्ति में लीन होने के कारण उन्हें ‘सती’ नाम से पुकारा गया।
एक दिन, सती ने विरक्ति और भक्ति से तपस्या करते हुए भगवान शिव की भक्ति में इतना लीन हो गई कि उनकी वृद्धि और सौंदर्य ने सभी दिशाओं में चमक उत्पन्न की। इससे देवराज इंद्र ने भी असुरराज तारकासुर की मांत्रिक दिव्य रथ का बहिष्कार कर दिया था।
इंद्र का यह कदम सती की माँ प्रसूती को महसूस हुआ और उन्हें अत्यंत दुख हुआ कि उनकी पुत्री को उनके चरणों में धरते हुए भगवान शिव की भक्ति में इतना खो जाने का आशंका है। सती ने अपने पिता को शिव भक्ति के महत्व को समझाने का प्रयास किया, लेकिन दक्ष राजा अपने अहंकार में भटक रहे थे।
एक दिन, दक्ष ने एक महायज्ञ का आयोजन किया और सभी देवताओं को भी न्योता भेजी। इस महायज्ञ में सती को भी न्योता भेजने की व्यवस्था नहीं की गई, जिससे उनकी अपमानिता हुई। इस पर सती ने अपने पिता की आघात सहन नहीं किया और अपने शरीर को धूने में विन्यस्त करके भगवान शिव के समक्ष प्रकट होकर उनके सम्मुख आत्महत्या कर ली।
जब भगवान शिव ने सती की मृत्यु का समाचार सुना, तो उनका विरह भाव उत्पन्न हुआ। विरह भाव में भगवान शिव ने अपने बालनंदन गणों को बचाने के लिए सती का शव लेकर तांडव नृत्य किया। इस नृत्य में उनके भयानक रूप ने समस्त जगत को काँप दिया था।
इसके बाद, भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र के द्वारा सती का शव कटा दिया और उसके अवशेषों को पृथ्वी पर विभाजित कर दिया। यहां तक कि भगवान शिव ने भी अपने अग्नि कुण्ड से उनके दिल का भाग जलाया था।
सती की मृत्यु के बाद भगवान शिव ने संसार के विनाश क
ा संकल्प किया, और उन्होंने अपने शरीर के विभिन्न अंगों को भूतनाथ, विष्णु, सूर्य, वायु, अग्नि, ब्रह्मा, इंद्र, यमराज, विश्वकर्मा, ऋषि, गंधर्व, अप्सरा और अनेक देवताओं के रूप में प्रकट किया। इस रूप में उन्हें ‘अनंत’ या ‘अनादि’ कहा गया।
इस रूप में भगवान शिव ने देवों को बुलाया और उनसे देवासुर संघर्ष करने के लिए कहा। इस तरह, सती के बलिदान और भगवान शिव के तांडव नृत्य के कारण उनकी महिमा और दिव्यता की महानता का वर्णन भगवान शिव पुराण में किया गया है।
4. सती का दहन: शिव पुराण में सती का दहन का वर्णन भी है। सती अपने पिता के यज्ञ में निष्क्रिया विधवा हो जाती है और विरहज्वला अग्नि में अपने शरीर को समर्पित करती है।
जी हाँ, भगवान शिव पुराण में सती का दहन का वर्णन निम्नलिखित है:
भगवान शिव के प्रतिमा के विवाह समारोह में दक्ष राजा ने सती को बुलाया था, लेकिन उन्होंने भगवान शिव के विवाह समारोह में सती को न्योता नहीं भेजा था जिससे सती ने अपमानित महसूस किया।
एक दिन, सती ने अपने मित्रों से भगवान शिव के विवाह समारोह का समाचार सुना और उसे देखने की इच्छा जताई। उसके मित्रों ने उसे यह समझाया कि वे यज्ञ समाप्ति तक प्रतीक्षा करेंगे और तब उसे भगवान शिव के यज्ञ समाप्ति की अनुमति मिलेगी। लेकिन सती ने अपने मन के वशीभूत होकर उस विवाह समारोह के लिए यात्रा करने का निश्चय किया।
सती ने भगवान शिव के प्रतिमा के समीप पहुंचते हुए देखा कि वहां दक्ष राजा ने उनको अपमानित किया और अपने यज्ञ में भगवान शिव की ओर नीच भाव से देख रहे हैं। सती के मन को यह अपमान नहीं सहा और उन्होंने अपने देह को धूने में विन्यस्त कर दिया। उन्होंने अपने देह को अग्नि में समर्पित कर दिया और अपने पूर्वजन्म के कर्म के फलस्वरूप उन्हें अपने शरीर को जलाते हुए देखा।
भगवान शिव को सती का यह बलिदान अत्यंत दुखी किया और उन्होंने अपने भयानक रूप के साथ सती के देह को सम्भाला। उन्होंने उसके शरीर को विभाजित कर दिया और उसके अवशेषों को पृथ्वी पर छिड़क दिया। इस प्रकार, सती का दहन हुआ और भगवान शिव विरहवश नृत्य के कारण भाग्यशाली हुए।
यह घटना भगवान शिव पुराण में भगवान शिव और सती के प्रेम और विरह का उदाहरण द
ेती है और उनकी अनंत भक्ति की प्रशंसा करती है।
5. पार्वती के उत्पत्ति: शिव पुराण में पार्वती के उत्पत्ति की कथा भी है। पार्वती को हिमावती और हिमवान्त की सन्तान के रूप में प्रकट किया जाता है।
शिव पुराण में पार्वती के उत्पत्ति की यह कथा वर्णित है:
किसी समय, देवराज इंद्र ने अपनी विजय की प्राप्ति के लिए भगवान शिव की तपस्या का विरोध किया था। उन्होंने कामदेव को शिव के ध्यान में भेजकर उन्हें अपनी तपस्या से विचलित करने की कोशिश की। इस प्रयास में कामदेव ने ताण्डवाकार विशाल विकार शास्त्र का उपयोग किया, जिससे भगवान शिव को प्रेमातुर्य में उत्तेजित होने की कोशिश की गई।
भगवान शिव ने अपने तपस्या में मग्न रहकर इस प्रतिक्रिया का उपेक्षा किया और कामदेव को अपने तेज़ी से ज्वार से भस्म कर दिया। इसके बाद, भगवान शिव ने अपने ध्यान में विश्राम किया और अपने ध्यान से प्रकट होते हुए भगवती पार्वती को अपने आगमन के लिए आह्वान किया।
उनके ध्यान में भगवती पार्वती विशाल विशाल दिव्य रूप में प्रकट हुईं, जिससे वे सभी देवताओं की दृष्टि में भावविभोर हो गईं। भगवान शिव ने पार्वती को अपने सामने अभिवादन किया और उन्हें अपनी आज्ञा के अनुसार दक्षिण दिशा में बैठने को कहा।
दक्षिण दिशा में बैठकर, पार्वती ने भगवान शिव की भक्ति में लगने का संकल्प किया और उनसे विवाह के लिए अनुमति मांगी। भगवान शिव ने उनके विवाह के लिए सहमति दी और इस प्रकार, भगवती पार्वती को हिमवान्त और हिमावती की सन्तान के रूप में प्रकट किया गया।
इस रूप में, पार्वती ने भगवान शिव की तपस्या का सहारा लिया और उन्हें अपनी भक्ति और सेवा के लिए प्रसन्न किया। इसके पश्चात, भगवान शिव ने पार्वती से विवाह किया और इस प्रकार, महादेव और पार्वती का विवाह सम्पन्न हुआ।
इस प्रकार, भगवान शिव पुराण में पार्वती के उत्पत्ति की कथा विस्तार से वर्णित है। उनके विवाह
का यह घटना पुराणों में विशेष महत्व रखती है और भगवान शिव और पार्वती का संयोग प्रेम और भक्ति का प्रतीक है।
6. भगवान शिव की तपस्या: शिव पुराण में भगवान शिव की तपस्या की कथा भी है। उन्होंने बहुत लंबे समय तक ध्यान और तपस्या की थी और विश्व के सृजनाधार ब्रह्मा को भी विस्मय में डाल दिया था।
भगवान शिव की तपस्या की कथा विश्वास के अनुसार इस प्रकार है:
एक समय की बात है, ब्रह्मा जी ने सृष्टि का काम शुरू किया था और समस्त विश्व को उत्पन्न किया था। लेकिन सृष्टि के नाश का कारण भी वही ब्रह्मा थे। समय के साथ, जीवों की दुराचारों और पापों के कारण सृष्टि में विकृति बढ़ गई थी और वह अपरिपक्वता के ग्रस्त हो गई थी।
इस चिंता में ब्रह्मा जी ने भगवान विष्णु को सलाह मांगी और विष्णु ने उन्हें शिव की आराधना करने की सलाह दी। भगवान विष्णु ने उन्हें बताया कि शिव जी विचारों के स्थान पर तपस्या करते हैं और उनकी आराधना से समस्त विश्व शांति प्राप्त कर सकता है।
ब्रह्मा जी ने इस सलाह का पालन करते हुए भगवान शिव की ध्यान और तपस्या करने का निर्णय लिया। उन्होंने कैलाश पर्वत पर ध्यान और तपस्या करना शुरू किया। उनकी तपस्या ने आकाश में भी बहुतायती संख्या में आग के ज्वालाओं को प्रकट किया और भगवान ब्रह्मा को भी व्याकुल कर दिया।
भगवान शिव ने बहुत लंबे समय तक अद्भुत ध्यान और तपस्या की और इसके परिणामस्वरूप, उन्हें भगवान विष्णु के विशेष दर्शन हुए। भगवान विष्णु ने भगवान शिव को आशीर्वाद दिया और उन्हें अनंत विवेक, ज्ञान, और दिव्यता की प्राप्ति हुई। इस तपस्या से भगवान शिव ने समस्त सृष्टि का उत्थान किया और सभी जीवों के उद्धार का मार्ग प्रदर्शित किया।
इस प्रकार, भगवान शिव की तपस्या की कथा शिव पुराण में वर्णित है, जिससे उनकी दिव्यता और महत्व का प्रकट होता है। उनकी तपस्या से विश्व के सभी जीवों को शांति और सुख का आनंद प्राप्त होता है।
7. दक्ष यज्ञ: शिव पुराण में दक्ष यज्ञ की कथा भी है। दक्ष यज्ञ में सती के प्रति दुर्वचन करने से भगवान शिव का क्रोध उत्पन्न होता है और उन्हें दक्ष यज्ञ को विघ्नहीन करने के लिए उत्तरकाण्ड में दक्ष यज्ञ भगन विधि है।
शिव पुराण में दक्ष यज्ञ की कथा विशेष महत्वपूर्ण है और इसे उत्तरकाण्ड में विस्तार से वर्णित किया गया है। दक्ष यज्ञ में हुई घटनाओं का वर्णन निम्नलिखित है:
दक्ष यज्ञ का आयोजन ब्रह्मा जी के द्वारा किया गया था। दक्ष राजा थे और वे प्राचीन ऋषि मुनियों के पुरोहित थे। दक्ष राजा की अपनी बेटी सती भगवान शिव की पत्नी थीं। सती भगवान शिव की भक्त थीं और अपने पति की आराधना करती थीं।
दक्ष यज्ञ का आयोजन करने के दौरान दक्ष राजा ने सती का अपमान किया और उन्हें यज्ञ के बिना अनुमति के नहीं बुलाया। इससे सती का मन व्याकुल हो गया और उन्होंने यज्ञ स्थल पर जाने का निर्णय किया।
सती यज्ञ स्थल पर पहुंचीं और वहां उन्हें देखकर उनके द्वारा हुए अपमान का अभिवादन किया। उनके भव्य स्वरूप को देखकर समस्त ऋषि-मुनि, देवी-देवता और सभी उपस्थित व्यक्तियों ने उन्हें सम्मान किया। लेकिन सती ने यज्ञ में हुए अपमान को देखकर उनका क्रोध उत्पन्न हो गया।
अपने अत्यंत नाराज भाव से, सती ने दक्ष यज्ञ को विघ्नहीन करने के लिए भगवान शिव की आराधना और तप करने का निर्णय लिया। उन्होंने यज्ञ भगन की विधि को अपनाया और अपने दिव्य ज्ञान और तपोबल से यज्ञ को नष्ट कर दिया।
दक्ष यज्ञ के नष्ट होने पर दक्ष राजा ने अपनी भूमिका का समापन किया और उन्होंने अपने द्वारा किए गए अपमान के लिए क्षमा याचना की। उन्होंने सती से क्षमा भी मांगी और सती ने अपने पिता की आज्ञा के अनुसार उन्हें क्षमा कर दिया।
इस प्रकार, दक्ष यज्ञ की कथा शिव पुराण म
ें वर्णित है, जिसमें भगवान शिव का क्रोध और सती की पतिव्रता का महत्वपूर्ण संदेश है। यह कथा भगवान शिव के भक्तों के लिए महत्वपूर्ण उपदेश और शिक्षा से भरी है।
ये कुछ मुख्य कथाएं हैं जो शिव पुराण में विस्तार से वर्णित हैं। इस ग्रंथ में भगवान शिव की विभिन्न लीलाएं, उपासना, तपस्या और दिव्यता का वर्णन होता है जो उनके भक्तों के लिए आदर्श हैं।